‘’बढते निशाचर’’

 

‘’बढते निशाचर’’

प्रारंभ

पुण्‍य धरा यह भारत भूमि, यहाँ निशाचर बढते हैं।
त्‍याग सभी मानव मर्याा, अधम क्रूरता करते हैं।
द्वापुर में बढे निशाचर, कृष्‍णा ने अवतार लिया।
मार गिराये सब असुरों को, भारत माँ को अभय किया।
त्रेता युग में जब असुरों ने, सत्‍य धर्म का हनन किया।
साधु संत धरा के हित में, सियाराम ने जन्‍म लिया।
मर्यादा में रहकर प्रभु ने, असुरों का संहार किया।
धर्म नीति की शिक्षा देकर, मानव का उपकार किया।
कलयुग में बढ रहे निशाचर, इनके ठााठ निराले हैं।
बी.आई.पी. में गणना इनकी, करते धंधे काले हैं।
सुरों और असुरों की गणना, खान पान से होती है।
भक्षाभक्ष पदारथ खाते, करते काया मोटी हैं।
कब्रिस्‍तान बना काया को, निशदिन मुर्दे भरते हैं।
जिसने जीवन दिया है सबको, उससे तनिक न डरते हैं।
ऐसे पशु पक्षी बेचारे, भगवन से फरियाद करें।
क्‍यों ऐसे इन्‍सान बनाए, पशु से बदतर कार्य करें।
हमें मारकर यह अज्ञानी, अपनी भूख मिटाते हैं।
इसीलिए पशुता के लक्षण, इन्‍सा में आ जाते हैं।
उसने इन्‍सान बनाया हमको, हम तो शैतान बने जाते हैं।
दी है अनमोल जिन्‍दगी सबको, यू ही बर्बाद किए जाते हैं।।
तान बने जाते हैं।
दी है अनमोल जिन्‍दगी सबको, यू ही बर्बाद किए जाते हैं।।

 


लेखक- सरजन सिंह बैस(एडवोकेट)        

प्रकाशक- रविन्‍द्र(टायपिस्‍ट, स्‍टेनो)                           

पता- ग्राम नरेला तह. बैरसिया, जिला भोपाल

 

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