परिकल्‍पना या कल्‍पना क्‍या है?, कल्‍पना कैसे करें? निबंध स्‍वरूप(जीवन)

What is imagination? (परिकल्‍पना/कल्‍पना क्‍या है?)

 Imagination एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आप अपने दिमाग मस्तिष्क में कोई भी पिक्चर क्रिएट करते हैं।, नई सोच बनाते है। या कोई भी अन्य विचार को मानसिक रूप से उत्पन्न करते है। यह वह प्रक्रिया होती है जिसमें आप किसी भी व्यक्ति विशेष या फिर किसी भी वस्तु के प्रति अपनी एक विचार धारा बना लेते हैं। 

 परिकल्‍पना कितने प्रकार की होती है?

सामान्‍यत: परिकल्‍पना दो प्रकार की होती है। पहली साधारण परिकल्‍पना एवं दूसरी जटिल परिकल्‍पना इसमें से पहली साधारण परिकल्‍पना आम जन की भावना में उत्‍पन्‍न होती एवं मिटती रहती है। वही दूसरी जटिल परिकल्‍पना में मनुष्‍य के मष्तिस्‍क में कोई विचार बहुत ही अधिक समय तक स्थिर होना आवश्‍यक है। जिससे वह उसके बारे में चितंन मनन के माध्‍यम से कार्य में रूपान्‍तरित कर सके। 

आज के समय में परिकल्‍पना

अब यहां पर सवाल उठाए जाते है कि हमको किस तरह के मानसिक विचारो को अपने मन में आने देना चाहिए तो ज्यादातर लोग कहते है कि हमें पॉजीटिव विचार अपने मस्तिष्क में आने देना चाहिए। परन्तु आज के समय में देखा जाए तो कोई भी व्यक्ति अपनी सोच या विचारधारा के अनुकूल नहीं चलता है। हां उसे लगता तो ऐसा ही कि वह अपनी मर्जी से चल रहा है। परन्‍तु वह अन्‍जान होता है। क्योंकि बचपन से ही लोगों को जो भी बताया जाता है। सिखाया जाता है। बस लोग वोही करना शुरू कर देते हैं और अपने आपको होशियार समझने लगते हैं। परन्‍तु कुछ लोग ऐसी परिस्थितियों से गुजरे हुए होते हैं। जिन्‍होने जीवन में आने वाले उतार चढाव को भलि-भांति देखा है। एवं वे जो भी व्यक्ति हाें वे अपनी सोच को कार्य में बदलतें है। तो उसको पागल या मंदबुद्धि समझते हैं। एवं वो व्‍यक्ति ही एक मिशाल के रूप में उभर के सामने आता है। अब यह बात भी है कि वो व्यक्ति किसी कार्य को जिस भी तरीके से कर रहा है वो उसकी विचारधारा के अनुकूल है। और उसने जो भी किया है। वो शायद ही आपके लिए सही ना हो। पर उसके लिए कहीं ना कहीं सही  होता है। परंतु वह जब किसी भी वस्तु के लिए किए जा रहे फिर से कुछ बेहतर तरीके से करेगा दोबारा उसी काम को पहले की तरह  नहीं करेगा। यदि यह उसकी अनुमति के अनुसार हो तो, क्योंकि उसमे उस काम के प्रति कुछ अलग करने की सोच उत्पन्न होती रहती है। मनुष्य के मस्तिष्क में विचार स्थिर नहीं रहते हैं। इनको काबू करने के लिए बहुत ही एकाग्र चित्त होना पड़ता है। जो आज के समय में असम्‍भव सा जान पडता है। आज के समय में तो बहुत ही कम लोगों को पता है। परिकल्‍पना के बारे में यदि कोई व्‍यक्ति एकाग्र चित्‍त होकर अपने मन में सिर्फ परिकल्‍पना की परिकल्‍पना करने तो भी उसे बहुत अच्‍छे परिणाम देखने को मिलेंगे और वो इसके बारे में स्‍वयं से ही जान सकेगा। 

भांति-भांति के लोगों में परिकल्‍पना की अलग-अलग छवि

जैसे कि हम एक उदाहरण के रूप में समझते हैं। जैसे कि कोई वैज्ञानिक है यदि उसने कोई अजीब सी वस्तु बनाई है जो किसी भी प्रकार का कार्य आसानी से कर देती है। उसको लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाए। और उस मशीन के कार्य के बारे में किसी भी व्यक्ति को नहीं बताया जाए। तो भांति भांति के लोग उस वस्तु उस मशीन को लेकर अपने मस्तिष्क में अलग-अलग धारणाएं अलग-अलग विचार या अपने अलग सोच स्वयं ही विकसित कर लेंगे। यहां तक की कई पिछड़े हुए लोग तो इसे कुछ और ही समझ सकते हैं। अब यह उनके सोचने पर डिपेंड करता है कि वह क्या सोचते हैं इस मशीन के संदर्भ में। चूंकि वैज्ञानिक को पता है कि वह मशीन किस प्रकार से काम करती है क्योंकि उसने मशीन को बनाया है उसके मस्तिष्क में उस मशीन को बनाने की सोच उत्पन्न हुई थी उसने उस मशीन की कल्पना की थी और उसे कार्य करके एक रूप, आकार में बदल दिया। परंतु उस वैज्ञानिक को छोड़कर किसी भी अन्य साधारण मनुष्य के मस्तिष्क में वही सोच उत्पन्न नहीं हुई जिस कारण से वह उस मशीन को एवं उसके कार्य को समझ पाने में असमर्थ रहे।

Power of Imagination

 

कल्‍पना की शक्ति या परिकल्‍पना की विशेषताएं

 यहां पर लोगों को जैसे सिखाया जाता है तो वैसा ही लोग दोहराने लगते हैं एवं अपने विचार अपनी कल्पना से वंचित रह जाते हैं और अपना जीवन जीते चले जाते हैं जिससे वह साधारण तौर पर अपने जीवन को पूर्ण कर मृत्यु की ओर चल देते हैं। परंतु वह अपने इस जीवन में कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाते। कल्पना में इतनी शक्ति होती है कि वह अपने शरीर को किस प्रकार से चलाना है यह निर्भर करा सकती है जैसे एक और उदाहरण है की एक कैदी जिस पर वैज्ञानिकों को एक शोध करना था और मस्तिष्क की शक्ति को परखना था जिसमें कैदी को मृत्युदंड मिलने वाला होता है और उसे वैज्ञानिकों द्वारा एक बंद कमरे में ले जाकर कहा जाता है की तुम्हें तो वैसे भी मृत्युदंड मिलने वाला है और यदि तुम्हें मृत्युदंड फांसी के रूप में मिला तो तुम्हें बहुत तकलीफ होगी परंतु यदि तुम्हें हम हमारे द्वारा एक जहरीले सांप से कटवा दें जिससे कि आपकी 1 सेकंड में मौत हो जाएगी और हम यह आपके ऊपर यह एक शोध के रूप में करना चाहते हैं तो वैज्ञानिकों ने उस कैदी से उस पर यह शोध करने की परमिशन ली तो कैदी राजी हो गया और उसने अपने ऊपर यह शोध को करने को कहा जिसमें कैदी का मुंह काले कपड़े से ढक दिया गया और उसे दो पिनों को एक साथ चुभोया गया और उस कैदी की 1 सेकेंड में मृत्यु हो गई। इस घटना से यह साबित हुआ की हमारे मन, मस्तिष्क में जो भी कल्पना शक्ति जागृत की जाती है या उसे अपने मन में सोचा विचारा जाता है तो  वह अपने असली रूप में आने के लिए तैयार हो जाती है अब बस यही बाकी रहता है कि उसे असली रूप में लाने के लिए व्यक्ति क्या प्रयास करता है। इस प्रयास में कई व्यक्ति असफल भी होते हैं परंतु निराश नहीं होते। और वे अपनी सोच, विचार या कल्पना को सच कर पाते हैं।

परिकल्‍पना जीवन में क्‍यों आवश्‍यक है?

हम आज के इस समय में देखते हैं कि हर(प्रत्‍येक) व्‍यक्ति किसी भी उपलब्धि काे पाने के लिये फिरता रहता है। व्‍यक्ति का दूसरों के लिये तो छोडिये स्‍वयं के लिये ही समय नहीं मिलता है। एवं वह इसी दैनिक जीवन में किसी बडे और सफल व्‍यक्ति की कॉपी (नकल) करता रहता है। इससे उसके अंदर की सोच, विचार प्रत्‍यक्ष रूप से प्रकट नहीं होते हैं। आज हम देखते ही हैं कि कई बच्‍चे अपने जीवन को नकल के माध्‍यम से ऐसा बना लेते हैं कि वह यह भी नहीं जानते कि इससे इनके भविष्‍य को नुकसान पहुंचेगा। वह अपनी आयु पूर्ण हुए बिना ही अपने गृहस्‍थ जीवन में आना चाहते हैं। क्‍योंकि जो वह देख रहें हैं वो उनको आकर्षक लग रहा है। एवं वो  भी यही चाहते हैं कि हम भ्‍ज्ञी ऐसा ही करें हमें भी लोग जाने एवं दूसरी अन्‍य बातें उनकी सोच यहीं तक सीमित रह जाती है। एवं वह इससे आगे ही नहीं बढ पाते हैं। इस दुविधा से बचने के लिये हमें पहले से ही यह कल्‍पना करनी होगी की बच्‍चों तक ये संस्‍कार पहुंचे ही ना या फिर आपके द्वारा बचपन से ही उनमें ऐसे संस्‍कार डाल दिये जायें जिससे वह बडे होकर स्‍वयं सोचने पर मजबूर हो जायें। यदि आप/हम ऐसा करने में सफल रहे तो यह दुविधा दूर हो जायेगी। एवं वह अपने जीवन को अपने तरीके से और भली-भांति से चला पायेंगे। परिकल्‍पना का जीवन में बहुत महत्‍व है। इससे व्‍यक्ति का अपना भविष्‍य तो बनता ही है। साथ ही देश के लिये भी यह अच्‍छे परिणाम देनलिये बचपन सजीवन में परिकल्‍पना

परिकल्‍पना के दैनिक जीवन में प्रत्‍यक्ष उदाहरण

 आज हम अपने इस जीवन में देखते हैं कि एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं। इन साधनों को खोजने वालों के मन मस्तिष्क के अंदर भी कल्पना imagination ने ही तो जन्म लिया था। नहीं तो कहां आइंस्टीन ग्रैविटी का नियम ढूंढ पाता कहां चल्स बेबेज कम्प्यूटर बना पाता कहां अलेगजेंडर ग्राहम बेल टेलीफोन का आविष्कार कर पाते अब ये बात दूसरी है कि ऎसी कल्पना आपके मस्तिष्क में कब उत्पन्न होती है। या तो यह कल्पना खुशी में दुख में या किसी भी परिस्थिति में उत्पन्न हो सकती है। ओर ना जाने आपके मस्तिष्क में कितनी ही कल्पनाएं आकर चली जाती हैं पर आपने शायद ही इन पर ध्यान दिया हो। अगर आप इनपर ध्यान देकर इन विचारों के लिए कार्य करते तो शायद आप एक वैज्ञानिक हो सकते थे। 

अन्‍य बातें परिकल्‍पना के संबंध में


कई लोगो को ये बातें बिल्कुल अटपटी सी लगती हैं। क्योंकि वो अपनी एक अलग दुनिया बना चुके हैं अपने ही मस्तिष्क में उन्होंने एक ऐसी कल्पना को जन्म दिया हो ओर उसको पूर्ण भी कर लिया हो तो उनको सभी की बातें बेकार सी मालूम जान पड़ती हैं। जैसे कोई पागल अपने मस्तिष्क में कल्पना करता है और वैसे ही सूट पहनकर के सेठ बना घूमता फिरता है तो जिनको उस पागल व्यक्ति के बारे में नहीं पता वह तो धोखा भी खा सकते हैं। चूंकि पागल को नहीं पता होता कि यदि किसी को मेरी इस झूठी पोषक के बारे में पता चला तो लोग क्या कहेंगे क्या करेंगे या अन्य अन्य क्योंकि वह पागल तो खुद ही इस बारे में अज्ञान होता है और वह यह सब नहीं सोचता क्योंकि उसके मस्तिष्क में अभी तक ऐसी कोई भी कल्पना ने जन्म नहीं लिया है कि लोग क्या सोचेंगे। कल्पना से कोई भी व्यक्ति एक महान व्यक्ति बन सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है आजकल यूट्यूब पर इंटरनेट पर आर्टिकल लिख कर लोग बस यहीं तक कह सकते हैं कि जो सोचोगे वही होगा ये कोई नहीं बताता की क्यों होगा चलो मान लिया कि आपका अवचेतन मन या मस्तिष्क इसके पीछे कार्य कर रहा है। तो इस अवचेतन मन में ही तो आपने वो विचार डाला है जिससे कि आपके कार्य सिद्ध हुए हैं। पर यह तो नहीं है ना कि आपने उस कार्य को अपनी धारणा में नहीं बदला है उसके लिए आप प्रयास भी तो कर रहे थे। जिस तरह किसी के भी सोचने  से कि उसको प्यास लगी है तो पानी उसके पास आ जाए ऐसा तो नहीं होगा ना। उसे इसके लिए तो उसको कार्य तो करना ही होगा। इस लेख का कोई अंत नहीं है।  या तो हम इस लेख को यहीं समाप्त कर दें या फिर उसको आगे बढ़ाते जाएं। इसमें एक ही बात सामने आएगी कि आपके द्वारा यदि कोई भी कल्पना की गई है तो वह पूर्ण भी हो जाएगी परंतु ध्यान रहे पहले आपको यह देखना होगा कि आपको उस कल्पना को असली रूप में लाना क्यों है। क्योंकि यह तो सिर्फ आपके मानसिक विचार के ऊपर निर्भर करेगा कि आप कोई भी कल्पना को असली रूप में क्यों लाना चाहते हैं। कोई भी कल्पना को असली रूप में लाने के लिए आपको एकाग्रता की आवश्यकता है। जो आज के समय में शायद ही किसी में भी हो आज के समय में तो लोगों को सब कुछ जल्दी और बिना अपना दिमाग लगाए चाहिए। एकाग्रता की बात आते ही। अपने मन में यह तय कर लेते हैं कि हम तो बहुत बिजी हैं हम कहां से इतनी एकाग्रता लाएंगे तथा अन्य अन्य बातें। आपके मस्तिष्क में चल रही कल्पनाओं में से किसी भी ऐसी कल्पना को जन्म ना दें जिससे समाज को नुक्सान पहुंचे। यदि आपको समाज में सम्मान चाहिए तो आप सकारात्मक कल्पनाओं को ही जन्म दें ताकि समाज इनका लाभ ले सके ओर आपके जीवन में आपको सम्मान की प्राप्ति हो सके।
धन्यवाद


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