बीएससी/बीकॉम/बीए विषय-हिन्‍दी भाषा और नैतिक मूल्‍य इकाई-1(2) , तृतीय वर्ष

ईकाई - 2 (मध्‍यप्रदेश की लोककलायें)

लघु उत्‍तरीय प्रश्‍न


प्रश्‍न-1 

निमाड़ में कितने प्रकार के नृत्य प्रचलित हैं स्पष्ट करो

उत्‍तर

निमाड़ी लोक जीवन में नृत्यों का महत्वपूर्ण स्थान है यहां के प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार हैं पहला गणगौर दूसरा आड़ा खड़ा नाच तीसरा डंडा नाच चौथा काठी नृत्य पांचवा फेफरिया नाच छठा मांडल या नाच

गणगौर - निमाड़ क्षेत्र में चेत्र अवधि दशमी से नौ दिनों तक गणगौर का उत्सव मनाया जाता है

आड़ा-खडा नाच - यह निमाड़ में विवाह के अवसर पर प्रमुख रूप से किया जाने वाला नृत्य है

डंडा नाच - चैत्र वैशाख की रात में विशेषता गणगौर पर्व पर निर्माण के किसान डंडा नाच करते हैं

काठी नृत्य ‌- काठी नृत्य निमाड़ का पारंपरिक लोक नृत्य है

फेफरिया नाच - यह एक पारंपरिक समूह नाज है इस नाच में स्त्री और पुरुष जोड़ी बनाकर गोल घेरे में नाचते हैं

मांडल या नाच - मांडल य नाच ढोल पर किया जाने वाला नाच है यह एक पारंपरिक समूह नृत्य है

 

प्रश्‍न-2 

मोरते क्या है यह किस स्थान पर प्रचलित है

उत्‍तर-

 विवाह के समय मुख्य दरवाजे पर पुत्री का भित्ति- चित्र बनाया जाता है जिसे मोरते कहा जाता है। यह बुंदेलखंड में प्रचलित लोग चित्रों में से एक है।

प्रश्‍न-3 

मालवा के पारंपरिक शिल्प कौन से हैं? बताइए।

उत्‍तर- 

मालवा के पारंपरिक शिल्प में विविधता के साथ प्राचीनता सहज रूप से देखने को मिलती है। जैसे- मिट्टी शिल्प में कुमार के द्वारा बनाए जाने वाले मटके बर्तन दिए मूर्तियां गुलदस्ते इत्यादि प्रमुख होते हैं। कंघी कला में अनेक प्रकार की कघियों का प्राचीन काल से ही प्रचलन अभी तक चला आ रहा है। इन कघियों में घढ़ाई के सुंदर काम के साथ ही रत्नों की जड़ाई, मीनाकारी और अनेक उपकरणों द्वारा उनका अलंकरण किया जाता है। कंघी बनाने का श्रेय बंजारा जनजाति को जाता है। पत्ता शिल्प के कलाकार मूलतः झाड़ू बनाने वाले ही होते हैं, जिनमें पेड़ के पत्तों से कलात्मक खिलौने, चटाई, आसन, दूल्हा -दुल्हन के मोड इत्यादि बनाए जाते हैं। लाख शिल्प के अंतर्गत वृक्ष के गोंद या रस से लाख बनाई जाती है। लाख का कार्य करने वाली जाति को ही लखारा के नाम से जाना जाता है। उज्जैन, इंदौर, रतलाम, मंदसौर, महेश्वर इत्यादि लाख शिल्प के परंपरागत केंद्र है। उज्जैन का छिपा शिल्प भी भेरूगढ़ के नाम से देश एवं विदेश में प्रसिद्ध है।

 

प्रश्‍न-4 

ढिमरयाई नृत्य किस जाति के द्वारा और कहा किया जाता है।

उत्‍तर-

 यह नृत्य शादी ब्याह एवं नव दुर्गा के आयोजनों पर ग्रामीण अंचल में ढीमर जाति के लोगों के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में दौड़ना, पंजों के बल चलना, मृदंग की थाप पर कलात्मक ढंग से ठुमकना, पदाघात करना यह सभी इस नृत्य की विशेषताएं हैं।, समय पर द्रुतगति से घूमते हुए 7-8 चक्कर लगाना इसके प्रमुख अंग है।

 

प्रश्‍न-5

 फाग गायन किस अवसर पर गाया जाता है एवं यह कहां पर प्रसिद्ध है?

उत्‍तर-

 फाग गायन को होली पर गाया जाता है और यह मालवा में प्रसिद्ध है।

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्‍न-1

मालवा की लोक कला का विवेचन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्‍तर- 

मध्य प्रदेश राज्य के अंचलों में मालवा अपनी विशेषताओं के कारण लोग प्रसिद्ध है। प्राचीन काल से मालवा में लोक कलाओं की समृद्ध परंपरा चली आ रही है। मालवी लोक जीवन की माधुर्य और सौंदर्य की कलात्मक अभिव्यक्ति मालवीय लोग चित्रों में बहुत सशक्त दिखाई पड़ती है। पहले जिस चित्रकला को व्यक्तियों पर व्यक्त किया जाता था वह धीरे-धीरे पुस्तकों में समाहित होती चली गई।

लोकचित्र- मालवा में पर्व, त्यौहार, उत्सव एवं व्रत की पारंपरिक लोक चित्रकला में, हरियाली अमावस्या पर दिवासा, नाग पंचमी पर नाग चित्र, जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्म के भित्ति चित्र, श्राद्ध पक्ष में संजा, नवरात्रि में नवरत, दशहरे पर भूमि चित्र, दीपावली पर गेरू खड़िया के मांडने तथा रंगोली, एकादशी पर चौक पुरावा, शीतला सप्तमी पर हल्दी कुमकुम के हाथे, जन्म उत्सव पर पगलिया, विवाह में गंगा पूजन का भित्ति चित्र इत्यादि प्रसिद्ध हैं। किंतु इसमें कोई भी शक नहीं है कि जैसी चित्रकार की मनोवृत्ति होगी वैसा ही चित्र होगा। मालवा की सीमा में शैलचित्र भीमबेटिका में विविध रूप से प्राप्त होते हैं।

लोकशिल्प - मालवा में पारंपरिक शिल्प में विविधता के साथ प्राचीनता सहज रूप से देखने को मिलती है। जैसे- मिट्टी शिल्प में कुमार के द्वारा बनाए जाने वाले मटके बर्तन दिए मूर्तियां गुलदस्ते इत्यादि प्रमुख होते हैं। कंघी कला में अनेक प्रकार की कघियों का प्राचीन काल से ही प्रचलन अभी तक चला आ रहा है। इन कघियों में घढ़ाई के सुंदर काम के साथ ही रत्नों की जड़ाई, मीनाकारी और अनेक उपकरणों द्वारा उनका अलंकरण किया जाता है। कंघी बनाने का श्रेय बंजारा जनजाति को जाता है। पत्ता शिल्प के कलाकार मूलतः झाड़ू बनाने वाले ही होते हैं, जिनमें पेड़ के पत्तों से कलात्मक खिलौने, चटाई, आसन, दूल्हा -दुल्हन के मोड इत्यादि बनाए जाते हैं। लाख शिल्प के अंतर्गत वृक्ष के गोंद या रस से लाख बनाई जाती है। लाख का कार्य करने वाली जाति को ही लखारा के नाम से जाना जाता है। उज्जैन, इंदौर, रतलाम, मंदसौर, महेश्वर इत्यादि लाख शिल्प के परंपरागत केंद्र है। उज्जैन का छिपा शिल्प भी भेरूगढ़ के नाम से देश एवं विदेश में प्रसिद्ध है।

लोक नृत्य- मालवा में पारंपरिक लोकनृत्य भी प्रचलित हैं। यह नृत्य अपनी विशेषताओं को अपने आप में समाहित किए हुए हैं। प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार हैं।

मटकी नृत्य- मटकी नृत्य का नाम मटकी ताल के कारण पड़ा है। इस नृत्य में महिलाएं हाथ पैर की सह मुद्राओं के साथ मटकी नृत्य में कलात्मक वैभव सृजित करती है विवाह तथा अन्य संस्कारों के उपलक्ष्य पर यह नृत्य किया जाता है।

आड़ा-खडा नाच - यह ढोल की पारंपरिक कहेरवा, दादरा इत्यादि चालू पर किया जाता है। यह एक महिलापरक नृत्य है।

रजवाड़ी नृत्य- यह नृत्य साड़ी के पल्लू को पकड़कर किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य को ढोल की विशेष ताल पर किया जाता है।

अंट्या नृत्य - इस नृत्य को पुरुषों के द्वारा किया जाता है।

 

 

प्रश्‍न-2 

 बुंदेलखंड की लोक कला पर निबंध लिखिए।

उत्‍तर-

 प्रत्येक युग में बुंदेलखंड की धरती पर युद्ध लड़ाई गए हैं, इसलिए बुंदेली लोग जनों में स्वाभाविक रूप से शौर्य और साहस देखने को मिलता है। बुंदेली लोककला में भी वीर रस का समायोजन देखने को मिलता है। बुंदेलखंड में बुंदेली लोकचित्र, लोकशिल्प एवं लोक नृत्य इत्यादि लोक विधाओं का संरक्षण एवं विस्तार परिलक्षित होता है।

लोकचित्र - बुंदेली लोकचित्र परंपरा में पर्व त्यौहार और व्रत से संबंधित भित्ति चित्रों एवं भूमि अलंकरणों की सर्वाधिक बहुलता है। भूमि अलंकरण में चौक पूजने का रिवाज प्रत्येक अवसर पर दिखाई देता है। बुंदेलखंड में प्रचलित लोग चित्रों में नौरता प्रमुख है, जो प्राय: खुशी एवं त्योहारों के अवसर पर बनाए जाते हैं। बुंदेली लोक चित्र के जातिगत प्रतीक, बिंब और अर्थ की गहराई के कारण लोक चित्र परंपरा के अर्थ रहस्य पूर्ण हैं। बुंदेलखंड के प्रमुख लोक चित्र इस प्रकार है।

सुरैती - दीपावली में लक्ष्मी पूजा के समय भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।

नौरता- नौरता या नवरत्न, नवरात्रि में मिट्टी, गेरू, हल्दी से कुंवारी कन्याओं के द्वारा भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।

मामुलिया - नवरात्रि में गोबर से कुंवारी कन्याओं के द्वारा भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।

मोर‌‌‍‌इला - दीवारों पर विभिन्न रंगों से मोर के भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।

बरायन- यह वधु मंडप  में विवाह के अवसर पर बनाए जाते हैं। इन्हें अगरोहन भी कहा जाता है।

लोककला- लोक कला का अभ्युदय साहित्य के साथ ही माना गया है। बुंदेलखंड में लोककला का एक रुप दैविक संकेतों तथा परंपरागत विश्वास पर आधारित है तथा दूसरा सामाजिक रीति-रिवाजों पर आधारित है। बुंदेली लोक कला प्रतीकात्मक रूप से विद्यमान है। जिसका सरलतापूर्ण चित्रण होता है। विभिन्न शिल्प कला में परंपरागत रूप से कार्य करने वाले लोगों की समाज में जाति का पहचान है।

यह भी जाने 

सुरैती का अर्थ 

सुरैती क्‍या है 

 

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टिप्पणियाँ

Upsc ने कहा…
Please English ke questions answered share kare sir