B.Sc. physics question answer Unit 1 Quantum Mechanics
Particles and Waves : Photoelectric effect. Black body radiation. Compton effect, de Broglie hypothesis. Wave particle duality. Davisson-Gemer experiment. Wave packet. Concept of phase and group velocity. Two slit experiment with electrons. Probability. Wave amplitude and wave functions. Heisenberg's uncertainty principle with illustrations. Basic postulates and formalism of Schrodinger's equation. Eigen values. Probabilistic interpretation of wave function. Equation of continuity. Probability current.
प्रश्न:- प्रकाश विद्युत प्रभाव क्या है ?
प्रकाश विद्युत प्रभाव एक ऐसी घटना है जिसमें जब किसी धातु की सतह पर उपयुक्त तरंगदैर्ध्य का विद्युत चुम्बकीय विकिरण (जैसे प्रकाश) गिरता है, तो उस धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं। इन उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन कहते हैं।
यह कैसे होता है?
- ऊर्जा का अवशोषण: जब प्रकाश की किरणें किसी धातु की सतह पर पड़ती हैं, तो धातु के परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन इस प्रकाश की ऊर्जा को अवशोषित करते हैं।
- इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन: यदि अवशोषित की गई ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से बांधने वाले बल से अधिक हो, तो इलेक्ट्रॉन धातु की सतह से बाहर निकल जाता है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव के कई प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों ने प्रकाश की क्वांटम प्रकृति को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये निष्कर्ष निम्न हैं:
-
आवृत्ति का प्रभाव:
- उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के सीधे समानुपाती होती है, न कि उसकी तीव्रता के।
- प्रत्येक धातु के लिए एक विशेष न्यूनतम आवृत्ति (थ्रेसहोल्ड आवृत्ति) होती है। यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति इस थ्रेसहोल्ड आवृत्ति से कम हो तो, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो, इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन नहीं होगा।
-
तीव्रता का प्रभाव:
- प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, लेकिन उनकी अधिकतम गतिज ऊर्जा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
-
तात्कालिक प्रभाव:
- प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, लेकिन उनकी अधिकतम गतिज ऊर्जा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
-
पदार्थ का प्रभाव:
- विभिन्न धातुओं के लिए थ्रेसहोल्ड आवृत्ति अलग-अलग होती है।
ये निष्कर्ष प्रकाश के क्वांटम सिद्धांत की पुष्टि करते हैं और हमें निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचने में मदद करते हैं:
- प्रकाश ऊर्जा के असतत पैकेटों (फोटॉनों) के रूप में संचरित होता है।
- एक फोटॉन की ऊर्जा उसकी आवृत्ति के समानुपाती होती है।
- जब एक फोटॉन एक इलेक्ट्रॉन से टकराता है, तो वह अपनी सारी ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता है।
- यदि फोटॉन की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से मुक्त करने के लिए आवश्यक ऊर्जा (कार्य फलन) से अधिक होती है, तो इलेक्ट्रॉन धातु की सतह से बाहर निकल जाता है।
इन निष्कर्षों का महत्व:
- प्रकाश विद्युत प्रभाव के ये निष्कर्ष क्वांटम यांत्रिकी के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थे।
- इन निष्कर्षों ने प्रकाश की तरंग प्रकृति के साथ-साथ कण प्रकृति को भी स्थापित किया।
- इन निष्कर्षों का उपयोग फोटोइलेक्ट्रिक सेल, फोटोमल्टीप्लायर ट्यूब और अन्य कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
मैक्स प्लांक ने सबसे पहले यह प्रस्ताव रखा था कि ऊर्जा निरंतर रूप से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पैकेटों या क्वांटा में उत्सर्जित होती है। इन ऊर्जा के पैकेटों को फोटॉन कहा जाता है।
आइंस्टीन ने प्लांक के इस क्वांटम सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या की। प्रकाश विद्युत प्रभाव में, जब प्रकाश किसी धातु की सतह पर पड़ता है तो उससे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। आइंस्टीन ने इस घटना को समझाने के लिए निम्नलिखित बातें कहीं:
- फोटॉन की ऊर्जा: आइंस्टीन ने कहा कि प्रकाश एक तरंग के रूप में नहीं, बल्कि फोटॉनों के कणों के रूप में व्यवहार करता है। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा उसकी आवृत्ति के समानुपाती होती है।
- देहली आवृत्ति: प्रत्येक धातु की एक निश्चित देहली आवृत्ति होती है। यदि प्रकाश की आवृत्ति इस देहली आवृत्ति से कम होती है, तो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो।
- इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा: यदि प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से अधिक होती है, तो फोटॉन अपनी सारी ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता है। इस ऊर्जा का कुछ भाग इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से बाहर निकालने में खर्च हो जाता है (कार्य फलन) और शेष भाग इलेक्ट्रॉन को गतिज ऊर्जा प्रदान करता है।
आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण:
आइंस्टीन ने इस घटना को गणितीय रूप से निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया:
E = hf = Φ + KEmax
जहाँ:
- E = फोटॉन की ऊर्जा
- h = प्लांक स्थिरांक
- f = प्रकाश की आवृत्ति
- Φ = धातु का कार्य फलन (इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा)
- KEmax = उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा
कृष्ण पिंड वर्णक्रम क्या है?
कृष्ण पिंड एक आदर्श वस्तु है जो हर प्रकार के विकिरण को पूरी तरह से अवशोषित कर लेती है। जब इस कृष्ण पिंड को गर्म किया जाता है, तो यह विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करता है। इस उत्सर्जित विकिरण की तीव्रता और तरंगदैर्ध्य का जो वितरण होता है, उसे कृष्ण पिंड वर्णक्रम कहते हैं। यह वर्णक्रम पूरी तरह से पिंड के तापमान पर निर्भर करता है।
- मुख्य विशेषताएं:
- कृष्ण पिंड सभी तरंगदैर्ध्य के विकिरण को पूरी तरह से अवशोषित करता है।
- उत्सर्जित विकिरण का वर्णक्रम केवल पिंड के तापमान पर निर्भर करता है।
- तापमान बढ़ने के साथ उत्सर्जित विकिरण की अधिकतम तीव्रता वाली तरंगदैर्ध्य कम होती जाती है। (वीन का विस्थापन नियम)
प्लैंक का सिद्धांत और कृष्ण पिंड वर्णक्रम
प्लैंक ने कृष्ण पिंड वर्णक्रम को समझाने के लिए एक क्रांतिकारी सिद्धांत दिया। उन्होंने कहा कि:
- ऊर्जा क्वांटा में उत्सर्जित होती है: प्लैंक के अनुसार, ऊर्जा निरंतर रूप से नहीं, बल्कि असतत पैकेटों या क्वांटा में उत्सर्जित होती है। इन ऊर्जा पैकेटों को फोटॉन कहा जाता है।
- फोटॉन की ऊर्जा: एक फोटॉन की ऊर्जा उसकी आवृत्ति के समानुपाती होती है। इस संबंध को प्लैंक का क्वांटा सिद्धांत कहते हैं:
- E = hν
- जहाँ,
- E = फोटॉन की ऊर्जा
- h = प्लैंक नियतांक
- ν = फोटॉन की आवृत्ति
कृष्ण पिंड वर्णक्रम और प्लैंक सिद्धांत का संबंध:
प्लैंक ने अपने सिद्धांत का उपयोग करके कृष्ण पिंड वर्णक्रम को सफलतापूर्वक समझाया। उन्होंने दिखाया कि कृष्ण पिंड द्वारा उत्सर्जित विकिरण की तीव्रता और तरंगदैर्ध्य का वितरण, प्लैंक के क्वांटा सिद्धांत के आधार पर ही समझा जा सकता है। प्लैंक के सिद्धांत ने क्लासिकल भौतिकी की सीमाओं को पार किया और क्वांटम यांत्रिकी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
निष्कर्ष:
कृष्ण पिंड वर्णक्रम और प्लैंक का सिद्धांत आधुनिक भौतिकी के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से हैं। प्लैंक के सिद्धांत ने हमें ऊर्जा के क्वांटम प्रकृति के बारे में समझाया और कृष्ण पिंड वर्णक्रम को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कॉम्पटन प्रभाव एक महत्वपूर्ण भौतिक घटना है, जिसके अनुसार जब उच्च ऊर्जा वाला विद्युत चुंबकीय विकिरण (जैसे एक्स-रे या गामा किरणें) किसी पदार्थ के इलेक्ट्रॉन से टकराता है, तो विकिरण का एक हिस्सा इलेक्ट्रॉन को स्थानांतरित हो जाता है और विकिरण की तरंगदैर्घ्य बढ़ जाती है।
सरल शब्दों में:
- टकराव: एक फोटॉन (विकिरण का एक कण) एक इलेक्ट्रॉन से टकराता है।
- ऊर्जा का स्थानांतरण: फोटॉन अपनी कुछ ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता है।
- तरंगदैर्घ्य में वृद्धि: फोटॉन की ऊर्जा कम होने के कारण, उसकी तरंगदैर्घ्य बढ़ जाती है।
यह क्यों होता है?
आइंस्टीन के प्रकाश विद्युत प्रभाव के सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश कणों (फोटॉनों) से बना होता है। जब एक फोटॉन एक इलेक्ट्रॉन से टकराता है, तो यह एक बिलियर्ड गेंदों की तरह टकराव जैसा होता है। टकराव के बाद, फोटॉन की दिशा और ऊर्जा बदल जाती है।
कॉम्पटन प्रभाव का महत्व:
- क्वांटम यांत्रिकी: इस प्रभाव ने क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांत को मजबूत किया और यह दिखाया कि प्रकाश की कण प्रकृति होती है।
- पदार्थ की संरचना: कॉम्पटन प्रभाव का उपयोग पदार्थ की संरचना के अध्ययन में किया जाता है।
- एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी: इस प्रभाव का उपयोग एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी में किया जाता है, जो पदार्थों की संरचना का निर्धारण करने के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है।
डी-ब्रॉग्ली समीकरण एक महत्वपूर्ण समीकरण है जो पदार्थ की तरंग प्रकृति को दर्शाता है। यह समीकरण फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी लुई-विक्टर डी ब्रॉग्ली द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
समीकरण का व्युत्पत्ति
1. प्लैंक का क्वांटम सिद्धांत:
- ऊर्जा (E) और आवृत्ति (ν) के बीच संबंध: E = hν जहाँ h = प्लांक स्थिरांक
2. प्रकाश का कण-तरंग द्वैत:
- प्रकाश एक तरंग के रूप में भी व्यवहार करता है और एक कण (फोटॉन) के रूप में भी।
- फोटॉन का संवेग (p) और तरंगदैर्घ्य (λ) के बीच संबंध: p = h/λ
3. डी-ब्रॉग्ली का परिकल्पना:
- डी-ब्रॉग्ली ने सुझाव दिया कि पदार्थ के कण (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि) भी तरंग जैसी प्रकृति प्रदर्शित करते हैं।
- एक गतिमान कण से संबद्ध तरंगदैर्घ्य (λ) को डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य कहा जाता है।
4. डी-ब्रॉग्ली समीकरण:
- एक कण का संवेग (p) = mv (जहाँ m = द्रव्यमान, v = वेग)
- प्लैंक के क्वांटम सिद्धांत और डी-ब्रॉग्ली के परिकल्पना को मिलाकर: mv = h/λ या, λ = h/mv
यह ही डी-ब्रॉग्ली समीकरण है।
समीकरण का महत्व
- यह समीकरण पदार्थ की द्वैत प्रकृति को स्पष्ट करता है।
- यह इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी और इलेक्ट्रॉन डिफ्रैक्शन जैसे उपकरणों के सिद्धांत को समझने में मदद करता है।
- यह क्वांटम यांत्रिकी का एक मूलभूत समीकरण है।
अनापेक्षकीय मुक्त कण
- अनापेक्षकीय मुक्त कण का अर्थ है कि कण प्रकाश की गति की तुलना में बहुत कम गति से गतिमान है और इस पर सापेक्षता के प्रभावों को नगण्य माना जा सकता है।
- डी-ब्रॉग्ली समीकरण इस स्थिति के लिए भी लागू होता है।
समूह वेग (Group Velocity) एक ऐसी अवधारणा है जिसका उपयोग तरंगों के अध्ययन में किया जाता है। जब हम विभिन्न आवृत्तियों वाली कई तरंगों को एक साथ मिलाते हैं, तो एक तरंग पैकेट बनता है। यह तरंग पैकेट किसी विशेष वेग से गति करता है। इस वेग को ही समूह वेग कहते हैं।
समूह वेग को आसान शब्दों में समझें
- तरंग पैकेट: मान लीजिए आप समुद्र में हैं और आपने एक पत्थर फेंका। पानी पर तरंगें उठेंगी। ये तरंगें विभिन्न आकार और आकृति की होंगी। सभी तरंगें एक साथ मिलकर एक पैकेट बनाती हैं।
- समूह वेग: यह वह वेग है जिसके साथ यह पूरा पैकेट आगे बढ़ता है।
गणितीय रूप से
समूह वेग को निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त किया जाता है:
vg = dω/dk
जहाँ:
- vg = समूह वेग
- ω = कोणीय आवृत्ति
- k = तरंग संख्या
परिचय
डी-ब्रोग्ली संबंध पदार्थ और तरंगों के द्वैत स्वरूप को जोड़ता है। यह बताता है कि हर गतिमान कण एक तरंग से भी जुड़ा होता है। समूह वेग, तरंग पैकेट के भीतर ऊर्जा के प्रवाह की गति को दर्शाता है। इस निगमन में हम देखेंगे कि कैसे समूह वेग का उपयोग करके डी-ब्रोग्ली संबंध को प्राप्त किया जा सकता है।
निगमन
-
समूह वेग (Group Velocity):
- समूह वेग (vg) को विभिन्न आवृत्तियों की तरंगों के एक समूह के वेग के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- गणितीय रूप से,
vg = dω/dk
जहाँ,
- ω = कोणीय आवृत्ति
- k = तरंग संख्या
-
डी-ब्रोग्ली संबंध:
- डी-ब्रोग्ली संबंध के अनुसार, किसी कण से जुड़ी तरंग का तरंगदैर्घ्य (λ) और उसका संवेग (p) निम्नलिखित संबंध से जुड़े होते हैं:
λ = h/p
जहाँ,
- h = प्लैंक स्थिरांक
-
निगमन:
- हम जानते हैं कि:
- ω = 2πν
- k = 2π/λ
- E = hν = ℏω
- p = h/λ = ℏk
- ऊर्जा (E) और संवेग (p) के बीच संबंध:
- E² = p²c² + (mc²)²
- गैर-सापेक्षतावादी स्थिति में (जब गति प्रकाश की गति से बहुत कम होती है), हम लिख सकते हैं:
- E ≈ p²/2m
- ऊपर के समीकरणों को समूह वेग के सूत्र में प्रतिस्थापित करने पर, हम प्राप्त करते हैं:
vg = dω/dk = d(E/ℏ)/d(p/ℏ) = dE/dp
- E = p²/2m से, dE/dp = p/m
- इसलिए, vg = p/m
- अब, डी-ब्रोग्ली संबंध से, p = h/λ
- इसलिए, vg = h/(mλ)
- या, λ = h/(mvg)
- यह डी-ब्रोग्ली संबंध का ही एक रूप है।
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भौतिक विज्ञान - 1(प्रथम प्रश्न पत्र) |
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